Monday, 24 November 2025

38-month-old girl's milestones

 A 38-month-old girl's milestones include advanced motor skills like pedaling a tricycle, walking up and down stairs with alternating feet, and hopping. Cognitively, she is curious, imaginative, understands two-step directions, and can identify simple colors. Socially, she enjoys pretend play with others, is growing in confidence, and may become more independent. 

Motor skills

Runs more confidently and can jump off the ground with two feet.

Walks up and down stairs, alternating feet, and can hop and stand on one foot for a few seconds.

Can climb well, ride a tricycle, and pedaling it.

Has improved hand-eye coordination, allowing her to stack more than six blocks, turn knobs and lids, and draw simple shapes or lines. 

Cognitive development

Has a growing attention span and a rapidly developing memory.

Can identify and name simple colors.

Is curious and imaginative, enjoys pretend play, and likes to copy adults.

Can follow two-step instructions (e.g., "Go get your shoes and put them by the door").

Can copy simple shapes like circles. 

Social and emotional development

Enjoys playing with other children and may become more cooperative.

Is gaining confidence and likes to show off new skills.

Shows more independence but still needs supervision.

May be learning to take responsibility for her own toileting, although daytime accidents can still happen. 

Language and communication

Can hold short conversations and ask "who," "what," or "where" questions.

Speech is often clear enough for strangers to understand.

Is developing her vocabulary and can say her first name when asked

Monday, 17 November 2025

आमवात- एक सत्क्षिप्त परिचय, आयुर्वेदोक्त निदान सम्प्राप्ति व चिकित्सा.

आमवात- एक सत्क्षिप्त परिचय,  आयुर्वेदोक्त निदान सम्प्राप्ति व चिकित्सा

 

आयुर्वेद में चिकित्सा तथा नैदानिक दृष्टि से वात त्याघी' प्रसंग अत्यंत महत्वपूर्ण है। वात व्याधि समूह में वातनाडी संस्थान तथा अस्थि एवं संधि से सम्बंधित रोगों के अलावा अनेक कोष्ठान्गो से भी सम्बंधित कई कठिन एवं चिरकालिक व्यघियो का समावेश है।

वात दोष एवं अस्थि का आपस में आश्रय आश्रयी सम्बद्ध होता है। हमोर शरीर के त्रिदोष (वात पित कफ) जो कि सम्पूर्ण शारीरिक क्रियाओ को संचालित करते हैI उनमे वात दोष का आश्रय  हमारी अस्थिया ही हैI

अस्थि और संधि में होने वाले रोग मुख्य रूप से वात दोष की विगुणता  या वैषम्य से होते हैं। सघियो में होने वाले रोगों में " आमवात " के संदर्भ में वर्णन प्रस्तुत है

आमवात को संधियों में होने वाले आयुर्वेदोक्त रोगों का राजा कहे तो अतिशयोक्ति नही होगीI

यह रोग मारक न होते हुए भी अपने आक्रमण काल में अन्य रोगों की अपेछा अत्यंत कष्टदायी होता है। यह शरीर की सभी छोटी बड़ी संघियों को प्रभाबित करता हैI तथा एक साथ भी कई संघियों को प्रभावित करता है।

इसमें सभी छोटी बड़ी संघ्रियो में तीव्र वेदना, शोथ, कर्मनाश आदि लक्षणों के साथ किसी भी आयुवर्ग में हों सकता है,  किन्तु प्रोणवास्ता में अपेक्षाकृत अधिक होता है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं मे इस रोग से अधिक प्रभावित होती हैI (3.1) का अनुपात मे !

तुलनात्मक इष्टि से यह रोग आधुनिक "Rheumatoid Discase" से मिलता जुलता है।

 

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति मे इसका सटीक उपचार होने के कारण इसके भरपूर मरीज आयुर्वेद औषधालयों में देखने को मिलते है।

आयुर्वेद ग्रक्षो में माधव  निदान ग्रन्थ में इसका सर्वप्रथम विस्तृत वर्णन मिलता है।

 

आमवात  शब्द की निरुक्ति या  शाब्दिक अर्थ

आमवात पुल्लिद संज्ञा है। इसमे दो शब्द है, आम + वात। आयुर्वेद में "आम" तथा वात का अलग -2 अस्तित्व हैI इस रोग में दोनो तत्व  प्रकुपित होकर एक साथ विभिन्न संघ्रियो में प्रविष्ट होकर वहा शोथ, वेदना आदि लक्षणों के साथ प्रकट होता है।

कुपितानाम हि दोषण शरीरे परिघाव्तम

यत्र संग ख वेणुयाद व्यधिश तत्रोप्जायेते

 

अर्थात दोष (आम+वात)  और दूष्य  (रस) आपस में मिलकर विचरण करते है, शरीर में एवं जहा ख वेणुग्य अर्थात जहा स्थान मिलता है, वही त्याघी उत्पन करता हैI आमवात में संघिया प्रभावित होती है, चूँकि संघ्रिया टेढ़ी-मेढ़ी होती है, अत: वहा आसानी से “आम दोष” रुक कर स्थान संप्रित होकर त्याघी को उत्पन्न करता हैI

आम – शरीर की जठरागी के मंद  होने से आहार का पाचन सही ना होकर आहार रस नही बनकर अपक्व रस को ही आम रस कहते हैI आम मूलतः कफवर्गीय हैI

 

आमवात व्याधि  के आयुर्वेदोक्त निदान:-

1.       विरुद्ध आहार विहार, मंदाग्नि, ज्यादा आराम करना या निहचेस्ट पड़े रहनाI

2.       ज्यादा श्निग्ध  (चिकनाई वाले) आहार लेने के बाद व्यायाम करना

3.       मुल मूत्र के वेग को धारण करना, दिन में सोना रात्रि जागरण करना, कठोर सय्य पर सोना

4.       दीर्घ कालीन रोग आदि  शारीरिक कारणों के साथ-साथ ईष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह, लज्जा, भय, चिंता, शोक आदि मानसिक कारण भी महत्वपूण भूमिका निभाते हैI

5.       शीतल आहार बिहार, तथा ज्यादा मासांहार करनाI

 

सप्रतिचक्र

             मंदाग्नि के कारण उत्पन्न आम आमाशय में दोषों से दृष्ट होकर  सम्पूर्ण शरीर में रक्त के साथ परिभ्रमण करता हैI वायु  से प्ररित यह आम आमाशय हृदय संधियों आदि की ओर जाता हैI कफस्थानों  में स्थित स्लेष्मा से  समान गुण धर्मी आम से मिलकर और भी विकृत एवं विदग्ध हो जाता है। यह आम अपनी  विग्घता से जहा पित्त को प्रकुप्रित करता है, वही अपने अभिस्य्द्री गुणों  से सम्पूर्ण स्वत्रसो को अवरुद्ध करने की प्रवित्ति  के कारण वायु को प्रारम्भ से ही प्रकुपित कर  देता  हैI

चरकचार्य ने कहा भी हैI

इस प्रकार मार्गवरोध यहाँ वात प्रकोप का मुख्य कारण हैI

पूर्णरूप -  पूर्णरूप में आमोत्पत्ति के लक्छण मिलते हैI

आमवात के लक्छण        (स्तोत्तस के अनुसार)

1.       अन्नवह  स्त्रोतस

1)      आग्निमघ

2)      अरुचि

3)      अपाक

4)      प्रसेक

5)      छर्दी

 

2.       उद्कुवह स्त्रोतस

1)      तृष्णा

 

3.       रशवह स्त्रोतस

1)      ज्वर

2)      अरुचि

3)      गौरव

4)      प्रसेक

5)      वेरस्य

6)      अंगमर्द

7)      हत्ग्रह

8)      अन्ग्सुन्यता

9)      उत्साहानी

10)   आग्निमघ

 

4.       मेदोवह स्त्रोतस

1)      आलस्य

2)      तृष्णा

 

5.       मज्जवह स्त्रोतस

1)      सघ्रिशुल

2)      सघ्रिशोथ

3)      भ्रम

4)      मूर्छा

5)      जाड्य

 

6.        पुरीषवह स्त्रोतस

1)      विड विवध

2)      कुचिशुल

3)      आनाह

4)      आत्रकुजन

 

7.       मूत्रवह स्त्रोतस

1)      बहूमूत्रता (Polyuria)

 

8.       मनोवह स्त्रोतस

1)      उत्साह हानि

2)      निद्रा विपरीतता

दोष – वात कपप्रधान त्रिदोष

दूष्या – रक्त, मांस, स्नायु, अस्थि, संधि

 

लक्छण:-   

1)      तीर्वावस्था  - विच्छू काटने जैसी पीड़ा

2)      संधि में तीर्व शोथ एवं शूल

3)      सम्पूर्ण शरीर में भारीपन, आलस्य

4)      मूर्च्छा, हृदय रोग, मूत्रधीक्य आदि लक्छण उत्पन्न होती हैI

5)      रोगी दिन में सो पता है, परन्तु रात्रि में नही सो पाता है, क्योकि वेदना बढ़ जाती हैI

 

रोग के अधिक बढ़ जाने के लक्छन:-

1)      प्रायः संघ्रिगत अम्वातिक परिवर्तनों के साथ  अस्थि विकृति के लक्छण जैसे wrist joint  से आगे के हाथ का बाहर की ओर प्रसवार्तित हो जानाI

2)      संघ्रियो में वेदना युक्त या अल्पवेदना युक्त स्थायी स्वरुप का शोभ द्रष्टि गोचर होता हैI जिसके कारण संघ्रियो का स्वरुप ‘मृदंग’ समान हो जाता हैI जिसे “मृदंग विकृति” नाम से जाना जाता हैI

3)      अनेक आमवात के रोगियों में अगुलियो में वक्रता मिलती हैI

 

चिकित्शा सिद्धांत:-

1)      लंघन

2)      स्वेदन

3)      दीपन (आम+वात+कटु)

4)      विरेचन

5)      स्नेहपान

6)      वस्ति (आम+वात+नाशक द्रष्यो से)

7)      वस्ती

8)      रुक्छ बालुका स्वेदन

 

चिकित्सा:-

1.       वेतरण वस्ति

 

द्रव:-     चिंचा (Tamarindly Indica)              -              20 gm

                गुड़ (Jaggery)                                      -              10 gm

                सेघ्रा नमक                                 -           5 gm

            गोमूत्र                                        -           160 ml

            तील्तैल                                      -           40 ml

            मदनफल चुंर्ण                               -           5 to 7 gm

 

निर्माण विघि:-

20gm चिर्चा कल्क और 10gm गुड़ को मिलकर रातभर 100 ml पानी में भिगोकर रखते हैI मिश्रण को पानी में हाथ से मसलते हैI

सुबह मद्रगनी में पाक करते है, उबलने तक तत्पश्चात 40 ml तिलतैल, 5 gm सैघ्रव, 160 ml गोमूत्र, 5 to 7 gm मदनफल पिप्पली चूर्ण मिलकर homogeneous liguid बनाकर सम्पूर्ण द्रव्य को वस्ति के रूप में प्रयोग करते हैI

वस्ति काल:- दोपहर भोजन पूर्व

2.       भल्लातक सिद्धछीर                च. चि 1 (रसायन षाद)

भल्लातक                 -           10 gm

दूध                          -           30 ml

पानी                       -           320 ml

भल्लातक को छोटे छोटे टुकड़े कर दूध+पानी में मिलाकर पकाते है, जब तक कि 80ml न बच जाएI

उपयोग:- सुबह 8 बजे 5 gm की मात्रा में मुख में घृत लगाकर

उपयुक्त दो योगो का आमवात रोगियों में विशेष अध्यन किया गया एवं परीणम अच्छे मिलेI इन योगो के अलावा भी कई संसोधन एवं संशमन योगो का प्रयोग किया गया एवं किया जा सकता हैI

 

3.       एकल ओषधिया:- लहसुन, गिलोय, एरंड स्नेह, शिलाजतु, गुल्लुल, प्रसरनी, गोछार, “शुंठी चूर्ण का प्रतिसरण, दशमूल क्लाथ, पुन्नरवा कषय

4.       चूर्ण:- अजमोदारी चूर्ण, वेश्नावर चूर्ण, पंचकोल चूर्ण

5.       वटी:- अग्नितुन्ठी वटी, कश्हरितकी, आमवातरी वटी, चित्रकारी वटी

6.       गुल्लुल:-सिंघनाद.गु., योगराज.गु., अम्रतारी गुग्गुल, पुन्नेर्वागु.I

7.       रस:- वातगजाकुंश, आमवात विह्वासन, अमवातरी,समिरपन्नाग, पुन्नेर्वा मंडूर, ताल सिद्धर

8.       आसव अरिष्ट:- पुर्न्रारिवर, अम्र्तरिष्ट

9.       स्नेहन:- पीड़ा होने पर(निरामावस्था में )- पञ्चगुड़, विशगर्भ, महाविशगर्भ

10.   लेप:- दशांग लेप, एरंड पत्त लेप

 

 

अपथ्य:- दूध, दही, मछली, उड़द, मिस्ठान, नमक(अधिक) पूर्वी वापु, ज्यादा प्रोटीन डाईट, विवघ्र करने वाले भोज्य पिछित द्रव्य

पथ्य:- लहसुन, हिंगु, अजवाइन, शुण्ठी, करेला, परवल, लौकी, गोमूत्र,शहद, उष्ण जल, पंचकोल सिद्ध जलI

 

एखंड तेल नित्य 30 ml रात में सेवन करेI

आचार्यो ने मात्र एरंड तेल को ही आमवात नाशक बताया हैI

 

Investigation

1)      C.B.C- mild leukocytosis may be present ESR-test

2)      C.R.P- elevated

3)      RA test- +ve.

4)      S. Creatinine- test

5)      B. urea- test

6)      X-Ray of joint, CT Scan, MRI, if required

7)      E.C.G

आमवात के रोगी को नित्य रूप से एरंड तेल का सेवन लम्बे समय तक करना चाहिएI

 

 

 

 

 

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